बँसुरिआ मेरे बैर परी।
छिनहूँ रहन देति नहिं घर में, मेरी बुद्धि हरी।
बेनु-बंस की यह प्रभुताई बिधि हर सुमति छरी।
’हरीचंद’ मोहन बस कीनो, बिरहिन ताप करी॥
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