बसंत होली – भारतेंदु हरिश्चंद्र | Basant Holi – Bharatendu Harishchandra
जोर भयो तन काम को आयो प्रकट बसंत ।बाढ़यो तन में अति बिरह भो सब सुख को अंत ।।1।। चैन मिटायो नारि को मैन सैन निज साज ।याद परी सुख देन की रैन कठिन भई आज ।।2।। परम …
जोर भयो तन काम को आयो प्रकट बसंत ।बाढ़यो तन में अति बिरह भो सब सुख को अंत ।।1।। चैन मिटायो नारि को मैन सैन निज साज ।याद परी सुख देन की रैन कठिन भई आज ।।2।। परम …
कहाँ हौ ऐ हमारे राम प्यारे ।किधर तुम छोड़कर मुझको सिधारे ।। बुढ़ापे में ये दु:ख भी देखना था।इसी के देखने को मैं बचा था ।। छिपाई है कहाँ सुन्दर वो मूरत ।दिखा दो …
आना राजा बन्दर का बीच सभा के,सभा में दोस्तो बन्दर की आमद आमद है।गधे औ फूलों के अफसर जी आमद आमद है।मरे जो घोड़े तो गदहा य बादशाह बना।उसी मसीह के पैकर की आमद आमद …
इन दुखियन को न चैन सपनेहुं मिल्यौ,तासों सदा व्याकुल बिकल अकुलायँगी। प्यारे ‘हरिचंद जूं’ की बीती जानि औध, प्रानचाहते चले पै ये तो संग ना समायँगी। …
धन्य ये मुनि वृन्दाबन बासी।दरसन हेतु बिहंगम ह्वै रहे, मूरति मधुर उपासी।नव कोमल दल पल्लव द्रुम पै, मिलि बैठत हैं आई।नैनन मूँदि त्यागि कोलाहल, सुनहिं बेनु धुनि …
सखी री ठाढ़े नंदकिसोर।वृंदाबन में मेहा बरसत, निसि बीती भयो भोर।नील बसन हरि-तन राजत हैं, पीत स्वामिनी मोर।’हरीचंद’ बलि-बलि ब्रज-नारी, सब ब्रजजन-मनचोर॥
बँसुरिआ मेरे बैर परी।छिनहूँ रहन देति नहिं घर में, मेरी बुद्धि हरी।बेनु-बंस की यह प्रभुताई बिधि हर सुमति छरी।’हरीचंद’ मोहन बस कीनो, बिरहिन ताप करी॥
लिखाय नाहीं देत्यो पढ़ाय नाहीं देत्यो।सैयाँ फिरंगिन बनाय नाहीं देत्यो॥लहँगा दुपट्टा नीको न लागै।मेमन का गाउन मँगाय नाहीं देत्यो।वै गोरिन हम रंग सँवलिया।नदिया प …
ऊधो जो अनेक मन होतेतो इक श्याम-सुन्दर को देते, इक लै जोग संजोते। एक सों सब गृह कारज करते, एक सों धरते ध्यान।एक सों श्याम रंग रंगते, तजि लोक लाज कुल कान। को जप …
तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।झुके कूल सों जल-परसन हित मनहु सुहाये॥किधौं मुकुर मैं लखत उझकि सब निज-निज सोभा।कै प्रनवत जल जानि परम पावन फल लोभा॥मनु आतप वारन …
नव उज्ज्वल जलधार हार हीरक सी सोहति।बिच-बिच छहरति बूंद मध्य मुक्ता मनि पोहति॥ लोल लहर लहि पवन एक पै इक इम आवत ।जिमि नर-गन मन बिबिध मनोरथ करत मिटावत॥ सुभग …