Shakti Aur Kshama – शक्ति और क्षमा | Ramdhari Singh “Dinkar”
Shakti Aur Kshama Poem Explanation In the “Shakti Aur Kshama” poem, Ramdhari Singh Dinkar shows his interpreting power and forgiveness. According to …
Shakti Aur Kshama Poem Explanation In the “Shakti Aur Kshama” poem, Ramdhari Singh Dinkar shows his interpreting power and forgiveness. According to …
वर्षों तक वन में घूम-घूम,बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,पांडव आये कुछ और निखर।सौभाग्य न सब दिन सोता है,देखें, आगे क्या होता है। मैत्री की राह …
सच है, विपत्ति जब आती है,कायर को ही दहलाती है,शूरमा नहीं विचलित होते,क्षण एक नहीं धीरज खोते,विघ्नों को गले लगाते हैं,काँटों में राह बनाते हैं। मुख से न कभी उफ …
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,आदमी भी क्या अनोखा जीव है ।उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है । जानता है तू कि मैं कितना पुराना …
सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी,मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,सिंहासन खाली करो कि जनता आती है । जनता ? हाँ, …
वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा संभालोचट्टानों की छाती से दूध निकालोहै रुकी जहाँ भी धार शिलाएं तोड़ोपीयूष चन्द्रमाओं का पकड़ निचोड़ो चढ़ तुंग शैल शिखरों पर सोम पियो …
धुँधली हुई दिशाएँ, छाने लगा कुहासाकुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँसाकोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा हैमुंह को छिपा तिमिर में क्यों तेज सो रहा हैदाता पुकार मेरी, …
ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलोकिसने कहा, युद्ध की बेला गई, शान्ति से बोलो?किसने कहा, और मत बेधो हृदय वह्नि के शर सेभरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, …
तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ, मैं ?मेरे प्यारे देश ! देह या मन को नमन करूँ मैं ?किसको नमन करूँ मैं भारत ? किसको नमन करूँ मैं ? भू के मानचित्र पर …
कंचन थाल सजा सौरभ सेओ फूलों की रानी!अलसाई-सी चली कहो,करने किसकी अगवानी? वैभव का उन्माद, रूप कीयह कैसी नादानी!उषे! भूल जाना न ओस कीकारुणामयी कहानी। ज़रा देखना …
आज न उडु के नील-कुंज में स्वप्न खोजने जाऊँगी,आज चमेली में न चंद्र-किरणों से चित्र बनाऊँगी।अधरों में मुस्कान, न लाली बन कपोल में छाउँगी,कवि ! किस्मत पर भी न …
सात रंगों के दिवस, सातो सुरों की रात,साँझ रच दूँगा गुलावों से, जवा से प्रात। पाँव धरने के लिए पथ में मसृण, रंगीन,भोर का दूँगा बिछा हर रोज मेघ नवीन। कंठ में मोती …
सत्य का जिसके हृदय में प्यार हो,एक पथ, बलि के लिए तैयार हो । फूँक दे सोचे बिना संसार को,तोड़ दे मँझधार जा पतवार को । कुछ नई पैदा रगों में जाँ करे,कुछ अजब पैदा …
मेरे नगपति! मेरे विशाल!साकार, दिव्य, गौरव विराट्,पौरूष के पुन्जीभूत ज्वाल!मेरी जननी के हिम-किरीट!मेरे भारत के दिव्य भाल!मेरे नगपति! मेरे विशाल!युग-युग अजेय, …
भावों के आवेग प्रबलमचा रहे उर में हलचल। कहते, उर के बाँध तोड़स्वर-स्त्रोत्तों में बह-बह अनजान,तृण, तरु, लता, अनिल, जल-थल कोछा लेंगे हम बनकर गान। पर, हूँ विवश, …
परिचय कविता Parichay Poem सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैंस्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैंबँधा हूँ, स्वप्न हूँ, लघु वृत हूँ मैंनहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं …